मन मौन हुआ कि चिंतन में बदलती है चिंता


चिंता में चिंतन छुपा है लेकिन, चिंतन में चिंता नहीं छुपी रहनी चाहिए। आज ज्यादातर लोग चिंताग्रस्त हैं, क्योंकि सभी के जीवन में कोई न कोई परेशानी चल रही है, इसलिए चिंता होना स्वाभाविक है। जब चिंता कर रहे होते हैं तो भीतर चिंतन चल रहा होता है, लेकिन जब चिंतन चल रहा हो, तब यह अभ्यास करें कि चिंतन के नीचे से चिंता हट जाना चाहिए। जब आप चिंता में डूबे हुए होते हैं तो भविष्य का भय सामने होता है लेकिन, जब आप चिंतन में हों तो भयमुक्त होना चाहिए। भयमुक्त चिंतन के लिए चार काम करते रहिए, … Continue reading मन मौन हुआ कि चिंतन में बदलती है चिंता

पीड़ा को उड़ा दीजिए, क्रोध नहीं आएगा


जीवन में कई बार ऐसा होता है कि जब हमारी पसंद का कोई काम न हो और सामने वाले को कुछ कह न पाएं तो हम खुद को चिड़चिड़ा बना लेते हैं। क्रोध में तो मनुष्य फिर भी कुछ व्यक्त कर देता है, लेकिन चिड़चिड़ेपन में वह क्रोध को अपने भीतर ले जाकर नया रूप देता है और खुद को आहत करता है। तो जब भी मनपसंद काम न हो, सबसे पहला धैर्य यहां रखना कि चिड़चिड़े न हो जाएं। जब कोई चिड़चिड़ा होता है तो जड़ वस्तुओं से भी लड़ने लगता है। क्रोधित आदमी तो फिर भी चेतन से … Continue reading पीड़ा को उड़ा दीजिए, क्रोध नहीं आएगा

भीतर की प्रखरता, ओज बढ़ते रहना चाहिए


किसी के जन्मदिन पर एक वेदवाक्य अक्सर पढ़ने को मिलता है- ‘शतं जीव शरदो वर्धमान:’। इसमें सौ साल जीने की बात आती है। लेकिन, वेद में कहा है ये सौ साल निरंतर सेवा करते हुए जीने के लिए हैं। इन सौ साल में केवल देह की आयु न बढ़े, बल्कि आत्मा की स्पष्टता भी बढ़े। शास्त्रों के अनुसार जैसे-जैसे आप सौ साल की ओर चलें, पहला काम होना चाहिए शरीर और स्वस्थ होता जाए। दूसरा मन पवित्र होता रहे तथा तीसरा काम यह हो कि आत्मा की अनुभूति और अधिक स्पष्ट होना चाहिए। तब सौ साल काम के हैं। इसी … Continue reading भीतर की प्रखरता, ओज बढ़ते रहना चाहिए

यदि समर्थ हैं तो कुछ देने में संकोच न करें


रूप का महत्व गुणों से बढ़ता है, इसलिए अपने भीतर कुछ गुण जरूर बचाकर रखिए। मनुष्य में एक गुण होता है- देने की वृत्ति। लेकिन, हमारा मन, हमारी कंजूसी इस वृत्ति में बाधा बन जाती है। मन कहता है- यदि मुझे कुछ मिलेगा नहीं तो मैं किसी को कुछ दूंगा भी नहीं..। जबकि होना यह चाहिए कि देते समय लेने की अपेक्षा या उम्मीद बिलकुल न रखें। पहले के दौर में कुछ लोग थे जो कुछ चीजें मुफ्त में दे दिया करते थे माता-बहनें चूड़ी वाले से सुहाग की चूड़ी मांग लेती थीं और वह खुशी से बिना मोल लिए … Continue reading यदि समर्थ हैं तो कुछ देने में संकोच न करें

मस्तिष्क काम न करे तो योग का सहारा लें


प्रकृति के चमत्कार भी बड़े गजब के हैं। जैसे- विज्ञान मानता है कि समझदार से समझदार, घोर प्रतिभाशाली व्यक्ति भी जीवन में अपने मस्तिष्क का आधा हिस्सा ही उपयोग में ले पाता है। बाकी आधा भाग जीवनभर अनुपयोगी ही रह जाता है। जब तक आधे हिस्से से काम करेंगे, कितने ही योग्य हों, हम जिंदगी की कुछ घटनाएं पकड़ नहीं पाएंगे। श्रीराम-रावण युद्ध में मेघनाद माया फैला रहा था। ऐसा दृश्य उपस्थित कर दिया था कि दसों दिशाओं में बाण छा गए। यहां तुलसीदासजी ने लिखा- ‘धरु धरु मारु सुनिअ धुनि काना। जो मारइ तेहि कोउ न जाना।।’ चारों ओर … Continue reading मस्तिष्क काम न करे तो योग का सहारा लें

जरूर करें वार्तालाप की दुनिया की सैर


जिंदगी के रंग बहुत तेजी से बदलते रहते हैं। एक रंग में जीवन कभी नहीं बीतता। आज दुख है तो कल सुख है। धूप-छांव, रात-दिन, ईर्ष्या-प्रेम, निंदा-प्रशंसा.. सब जिंदगी में अलग-अलग ढंग से मिलता रहेगा। इसलिए इतना तो तय मान लीजिए कि जीवन कभी एक ढर्रे पर नहीं चलेगा। हमारी तैयारी कमजोर हुई तो जिंदगी बोझ हो जाएगी। जीवन में थोड़ा हल्का होना सीखिए और उसके लिए एक प्रयोग करें। अपनी एक ऐसी मंडली तैयार करें जो कहासुनी का ग्रुप हो। इसे यूं समझा जाए कि अपने व्यवहार, व्यवसाय और संबंधों के चलते हम जिंदगी में बहुत से लोगों से … Continue reading जरूर करें वार्तालाप की दुनिया की सैर

निंदा हो तो दूरदर्शी और सहनशील हो जाएं


अपनी निंदा सुनकर समझदार से समझदार व्यक्ति भी विचलित हो जाता है। कुछ लोग अपनी बेचैनी बाहर प्रकट कर देते हैं और कुछ छुपाकर रख लेते हैं, पर निंदा अच्छे-अच्छों को विचलित कर जाती है। अब ऐसी व्यवस्था तो नहीं हो सकती कि आपकी कोई निंदा करे ही नहीं। इस संसार में ज्यादातर लोग ऐसे हैं, ईर्ष्या जिनका स्वभाव है। आप उनके लिए कितना ही अच्छा कर लें, वो तो ईर्ष्या करेंगे ही और ईर्ष्या करने वालों का सबसे अच्छा हथियार होता है निंदा। अब, यदि सामने वाले ने हथियार उठा ही रखा है तो युद्ध तो आपको भी करना … Continue reading निंदा हो तो दूरदर्शी और सहनशील हो जाएं

रिक्तता, खालीपन या शून्यता है अवकाश


‘अवकाश’ का सामान्य अर्थ होता है काम के बीच छुट्टी। लेकिन यह बहुत सतही अर्थ है। अध्यात्म में अवकाश को रिक्तता, खालीपन या शून्यता कहा है। रिक्त और शून्य ये दो ऐसे शब्द हैं कि यदि ठीक से समझ में आ जाएं तो हम अपने घर में वैकुंठ उतार सकते हैं। हमारे परिवार अवकाश के श्रेष्ठ स्थान हैं। यहां आकर ऐसी रिक्तता, शून्यता औार शांति मिल सकती है जिसकी तलाश में हम यहां-वहां भागते फिरते हैं। तो अवकाश को अपने परिवार से ठीक से जोड़ें। जब भी घर में आएं, खुद को समझाइए कि यह अवकाश का क्षेत्र है, यहां … Continue reading रिक्तता, खालीपन या शून्यता है अवकाश

दुख आना और होना दोनों अलग हैं


‘सुखी बसै संसार सब दुखिया रहे न कोय। यह अभिलाषा हम सबकी सो भगवन् पूरी होय।।’ इस पंक्ति को भक्त लोग बार-बार दोहराते हैं। इसमें भक्त भगवान से कहता है- हे प्रभु, इस संसार को सुखी कर दो और ऐसी कृपा बरसाओ कि कोई दुखी न रहे। भक्त का तो काम ही है मांगना, पर इस बात को सुनकर भगवान भी हंसते हुए कहते होंगे- तेरा भाव तो अच्छा है। क्या बुराई है सुख मांगने में। भगवान इसलिए हंसते हैं कि देखो, दुख तो आएंगे। दुनिया में कोई सुख ऐसा नहीं बना जो बिना दुख को साथ लाए अकेला आया … Continue reading दुख आना और होना दोनों अलग हैं

योग्य का चयन यानी काम पूरा


किसी काम के लिए सही व्यक्ति का चयन हो जाए तो समझ लीजिए काम शुरू होने से पहले ही पूरा हो गया। प्रबंधन की भाषा में यह अपने से अधिक योग्यता वालों को सदैव टीम में रखने की बात है। योग्य लोगों से काम लें तो उद्‌देश्य बहुत साफ-सुथरे ढंग से उन्हें बताएं। उनके मान-सम्मान में कमी रखें, योग्यता इतना जरूर चाहती है। सुग्रीव हनुमानजी से योग्यता में कम थे, लेकिन राजा थे। दृश्य चल रहा है किष्किंधा कांड का। क्रोधित लक्ष्मण आए तो सुग्रीव समझ गए कि उन्हें केवल हनुमानजी ही समझा सकते हैं, लेकिन केवल इतने से काम … Continue reading योग्य का चयन यानी काम पूरा