ऐसा कहते हैं कि पहले का समय श्रद्धा का था, आज का दौर तर्क का है। पहले लोगों की जीवन शैली में श्रद्धा और विश्वास की प्रधानता थी। लोग सहज मान लेते थे कि ये भगवान हैं, ये गुरु हैं, ये माता-पिता हैं और पूरी श्रद्धा के साथ उनसे संबंध निभाते थे। धीरे-धीरे समय बदला और लोगों के जीवन में तर्क व विज्ञान की प्रधानता हो गई। आज तो बच्चे अपने माता-पिता के प्रति जो संबंध निभाते हैं, उसमें भी विज्ञान और तर्क की बातें करते हैं।
जीवन में संबंधों को निभाते हुए कभी-कभी एक-दूसरे को सलाह देना पड़ती है और एक-दूसरे की राय मानना भी पड़ती है। लेकिन अब उस श्रद्धा और विश्वास का दौर नहीं रहा कि किसी को सलाह दें और वह सहज ही मान ले। इसलिए सलाह ऐसी होनी चाहिए कि सामने वाले को भरोसा भी हो और सुखद भी लगे। लंका के युद्ध मेंं मेघनाद यज्ञ कर रहा था। विभीषण ने सलाह देते हुए रामजी से कहा- यदि मेघनाद का यज्ञ सिद्ध हो गया तो फिर उसे आसानी से जीत पाना मुश्किल हो जाएगा।
इस पर तुलसीदासजी ने लिखा- ‘सुनि रघुपति अतिसय सुख माना। बोले अंगदादि कपि नाना।।’ विभीषण की सलाह सुन श्रीराम को बहुत सुख हुआ और उन्होंने अंगद आदि वानरों को बुलाया। यहां ‘राम को सुख हुआ’ वाली बात हमारे बड़े काम की है। जब भी किसी को कोई सलाह दें, उस सलाह में ठोस तर्क, कोई वैज्ञानिक तथ्य होना चाहिए। सबसे बड़ी बात वह सलाह सामने वाले के लिए सुखकारी हो..।
thos tark v tathy vali salah hi de.