भक्ति में निरंतरता का बड़ा महत्व है

बुराई कब-किसकी मिटी है, दुर्गुण कब-किसके खत्म हुए हैं? यह अनवरत सिलसिला जन्म से आरंभ होता है और मृत्यु तक भिन्न रूपों में चलता रहता है। एक होता है खत्म करना और दूसरा विलीन करना। खत्म करने में बहुत ताकत लगती है और विलीन करने में तकनीक काम आती है। जैसे हम सोचें पानी को खत्म करके बर्फ बनाएं तो संभव नहीं। बर्फ खत्म करके पानी बनाना भी मुमकिन नहीं। यह विलीनीकरण की क्रिया होगी। ऐसे ही दुर्गुण विलीन करने पड़ते हैं। अपनी बुराई को विलीन करने का सबसे अच्छा तरीका है, उसे पहचानें, फिर उसे जानें और जैसे ही अपने दुर्गुणों को जानने लगते हैं वो अपने आप विलीन होने लगते हैं। इनसे लड़ाई करें। संयम का मतलब है अपनी बुराई को जानना। इसके लिए जो दृष्टि लगती है वह दृष्टि सिर्फ परमात्मा से मिलती है। एक प्रयोग करते रहिए। खुद को विश्वास दिलाइए कि आप शरीर, सांस और मन से संचालित हैं। जैसे ही आप अपने आपको शरीर, सांस और मन से जोड़ेंगे, अपने दुर्गुणों से पहचान होने लगेगी। जब आप सांस पर काम करेंगे तो शरीर और मन थोड़े अलग-अलग दिखने लगेंगे। इसे कहेेंगे जानना। जो लोग बीमा कराते हैं वे जानते हैं कि बीमा करवाने के बाद महत्वपूर्ण बात रह जाती है नियमित रूप से किस्तें जमा करवाना। संसार का सबसे सुरक्षित बीमा ईश्वर का भरोसा है, लेकिन उसके लिए आपको निरंतर किस्त भी जमा करानी पड़ेगी। इसीलिए भक्ति में निरंतरता का बड़ा महत्व है।


bhakti me nirantarta ka bda mahatwa he.

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