भगवान शिव कल्याण की विराट परंपरा के प्रतिनिधि हैं। आज दुनिया में जिस तरह का वातावरण है, कल्याण की बड़ी आवश्यकता है। कल्याण शब्द सेवा से भी ऊपर है। सेवा में तो फिर भी कभी-कभी स्वार्थ का भाव आ जाता है, लेकिन कल्याण का मतलब है सेवाओं के सारे स्वरूप एक घटना में समा जाएं। शिव इस मामले में अद्भुत हैं। उनकी प्रत्येक लीला आनंद के सृजन का उद्घोष है।
शिवचरित्र की जितनी कथाएं हैं, उनमें गजब की सच्चाई है। पूरा शिव चरित्र सिखाता है कि सुख और आनंद आप ही के भीतर है। थोड़ा भीतर उतरकर उसे प्राप्त कर लो और फिर दूसरों पर छिड़क दो। अपनी खुशी जितनी दूसरों में बांटेंगे, भीतर उसकी उतनी ही सुगंध बढ़ जाएगी।
शिव को सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् इसलिए कहा गया है कि जीवन की सुंदरता की खोज में भले ही पूरे संसार में घूम लें, लेकिन यदि वह आपके भीतर नहीं है तो कहीं नहीं है। हमें उनके इस चरित्र को याद रखना चाहिए। वेदों में तो शिव को अव्यक्त, अजन्मा और सबका कारण बताया है। वे पालक और संहारक दोनों हैं।
शास्त्रों में लिखा है देव-दनुज, ऋषि-महर्षि, योगेंद्र-मुनींद्र, सिद्ध-गंधर्व, साधु-संत, सामान्य मनुष्य ये सभी शिव की इसलिए उपासना करते हैं कि ये कल्याण के देवता हैं। आज शिवरात्रि पर जब शिवलिंग पर जल चढ़ाएं तो एक कामना जरूर करें कि हे शिव, केवल मुझ अकेले को नहीं, पूरे संसार का कल्याण कीजिएगा, शांति प्रदान कीजिएगा। यही सच्ची शिवपूजा होगी..।
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