‘स्वस्वरूप के अनुसंधान का नाम खुशी है’। कुछ शास्त्रों में खुशी को लेकर इस तरह की बातें लिखी गई हैं। स्वस्वरूप यानी आप क्या हैं, इसकी खोज आप ही को करनी है। मैं कौन हूं, यह जानने के लिए बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे गए। अगर सीधी सी बात करें तो कहा जाएगा कि वासना का परदा यदि हटा दिया जाए तो ‘मैं कौन हूं’ का उत्तर मिल जाएगा। लेकिन, पहले यह समझ लें कि वासना क्या होती है? इंद्रियों का भटक जाना, गलत दिशा में चले जाना वासना है। तो इंद्रियां जब तक गलत बहती रहेंगी, अनुचित के प्रति आसक्ति रखेंगी, वासना बनी रहेगी और एक परदे की तरह इस सवाल को ढंककर रखेगी कि हम हैं कौन? यदि ‘मैं कौन हूं’ ठीक से न जाना गया तो फिर आप खुश नहीं रह सकते।
हां, खुश दिखने का अभिनय कर सकते हैं। चार काम किए जाएं जीवन में तो ‘मैं कौन हूं’ यह जानना आसान हो जाएगा। एक, धैर्य कभी न छोड़ें। दो, जीवन को एक अनुशासन में बांधें। तीन, मन निर्मल हो और चार, परहित की कामना सदैव बनी रहे। ये चार काम यदि करते हैं तो समझो इंद्रियां सही दिशा में हैं और इंद्रियां सही दिशा में हैं तो वासना का परदा हटाना आसान है। फिर ‘मैं कौन हूं’ का उत्तर मिलेगा और जैसे ही उत्तर मिला, एकदम से खुश हो जाएंगे, क्योंकि आप जान जाएंगे कि न आप शरीर हैं, न मन हैं। आप आत्मा हैं। इसी में आपकी खुशी है। आत्मा सदैव खुश रहती है और अपने साथ जो भी आएगा, उसे भी खुश रखती है..।
vasna ka parda hatate hi mil jaegi asli khushi.