वैसे तो सभी सभ्य लोग चाहते हैं कि दुर्गुणों का हमला परिवारों पर सीधा न हो। अत: घर की चारदिवारी में कुछ सुरक्षा रखते हैं। घर के सदस्य आचरण से न गिर जाएं और ऐसा काम घर में न करें, जो उनके संस्कार और परम्पराओं से मेल नहीं खाता हो। इसे लेकर सभी सजग रहते हैं। लेकिन, इसे समझना होगा। मौजूदा माहौल में जो लोग चाहते हों कि बाहर के दुर्गुण घर में न आएं तो उन्हें दो बातों पर काम करना चाहिए। संबंध खराब होते हैं एक-दूसरे की निंदा और केवल शरीर पर टिकने के कारण। शास्त्रों में कुछ बीमारियां बताई हैं, जिन्हें मानस रोग कहा गया है। बाहर के रोगों की तरह मनुष्य के भीतर भी रोग होते हैं, जिनका इलाज उसे खुद ही करना है। मोह को सारे रोगों का कारण बताया गया है। उसके बाद काम, क्रोध और लोभ को रोग कहा है। आयुर्वेद के हिसाब से वात, पित्त और कफ बीमारियों के कारण हैं। वात मतलब वायु। काम को वायु, पित्त यानी एसीडीटी को क्रोध और कफ को लोभ कहा है। इन बीमारियों के रहते हम घर का वातावरण अच्छा रख ही नहीं सकते। नतीजे में सदस्य तनावग्रस्त होंगे, एक-दूसरे पर आक्रमण करेंगे, एक-दूसरे की निंदा करेंगे और धीरे-धीरे परिवार टूटने लगेंगे। यदि एक साथ रहेंगे भी तो एक-दूसरे को बोझ मानेंगे। इसलिए परिवार बचाना हो तो दुर्गुणों से बचिए और उसके लिए मानस रोग का इलाज खुद करें। भक्ति, योग, सत्संग वो दवाएं हैं जो असर भले ही धीरे करें पर परिवार बचाने में बड़े काम की हैं।
manas rog ka ilaaz kar durguno se bache.