आंतरिक पवित्रता ईश्वर की पहली पसंद

बहुत से लोग एक सवाल पूछते हैं कि भगवान कैसे मिलता है? चूंकि इस संसार में लोगों ने परमात्मा को पाने के कई साधन अपना रखे हैं, इसलिए एक सामान्य भक्त भ्रमित हो जाता है कि क्या किया जाए जिससे कि भगवान मिल सकें? दो रास्ते हैं इसके..। पहले में कठिनाई है, क्योंकि इसमें खूब जप-तप, कर्मकांड करना पड़ेगा।

दूसरा रास्ता साधारण सा है- अपने हृदय को शुद्ध करिए। आप भीतर से जितने पवित्र होंगे, परमात्मा उतना जल्दी मिल जाएगा, क्योंकि आंतरिक पवित्रता ईश्वर की पहली पसंद है। पाप और परमात्मा कभी एक साथ नहीं रह पाएंगे। आज लोग बाहर से तो बहुत साफ-सुथरे, पवित्र दिखते हैं, लेकिन भीतर कई तरह का कचरा लिए बैठे है, जो भगवान देख लेता है और फिर जीवन में नहीं उतरता।

जैसे ही भीतर से पवित्र होते हैं, आपका होश जाग जाता है। दुनिया में दो प्राणी ऐसे हैं जो सोते हुए भी आंखें खुली रखते है- मछली और सांप। मनुष्य को इन दोनों की तरह सोते और जागते में होश की आंख खुली रखना है। जैसे ही होश जागेगा, आप समझ जाएंगे कि भीतर से सदैव पवित्र रहना है।

भीतर से पवित्रता रखना हो तो पांच काम करिएगा- क्रोध पर काबू पाएं, लोभ को दूर रखें, किसी से ईर्ष्या न करें, किसी भी वस्तु से अत्यधिक लगाव न रखें और इच्छा की अति न करें..। ये पांच बातें साध लीं तो आप भीतर से भी सदैव पवित्र रहेंगे। मन पवित्र हो तो हर कर्म सत्कर्म बन जाता है और ऐसे लोगों के जीवन में परमात्मा सहर्ष चला आता है..।


god, soul, aantrik pavitrata ishwar ki phli pasand.

Advertisement

Share your thoughts on this article...

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s