इन्सान की ज़िंदगी में जब परेशानियां आती हैं, मनपसंद काम नहीं होता, अनिष्ट की आशंका होती हैं तो इन स्थितियों से पार पाने के लिए वह जो भी काम करता है, उनमें से एक होता है टोटके का सहारा। क्या सचमुच टोटकों से परिणाम मिलता है? इस पर अलग शोध चल रहा है। यह हमारा विषय नहीं है, लेकिन जब ऐसा हो तो समझिए उस टोटके के पीछेकोई न कोई विज्ञान जरूर रहा होगा। अंधविश्वास की शुरुआत भी किसी न किसी विश्वास से होती है और जब विश्वास की गहराई में जाएंगे तो श्रद्धा मिलेगी। श्रद्धा को थोड़ा और पकड़िए तो पता लगेगा आप यदि परमात्मा के भरोसे हैं तो सारे टोटके काम आ जाएंगे। अगर उस पर विश्वास नहीं हैं तो कुछ भी करते रहिए, कुछ हाथ लगने वाला नहीं। हनुमानजी जब औषधि लेकर अयोध्या के ऊपर से गुजर रहे थे तो भरतजी को लगा कोई राक्षस है और तीर चला दिया जिससे हनुमानजी मूर्छित होकर गिर पड़े। भरतजी ने बहुत प्रयास किया कि हनुमान की मूर्छा टूटे, पर नहीं टूटी। तब मन ही मन कहा, ‘जौं मोरें मन बच अरू काया। प्रीति राम पद कमल अमाया।। यदि मन, वचन और शरीर से श्रीराम के चरणों में मेरा निष्कपट प्रेम है तो यह वानर पीड़ारहित होकर मूर्छा से बाहर आ जाए। ऐसा हो भी गया। बस, यह जो सूत्र भरतजी ने हमें दिया, इसे याद रखिए कि जिस दिन मन, वचन और कर्म से एक होकर कोई काम करते हैं तो मानकर चलिए, सारे टोटके, सारे तौर-तरीके चमत्कार की तरह काम कर जाएंगे…।
man vachan karma se ek hokar kam karein.