भीतर आती सांस को विचार-शून्य रखें

जो एकांत पसंद लोग हैं, उनके भीतर यह सवाल जरूर खड़ा होता है कि हम हैं क्यों, इस दुनिया में क्यों आए हैं, हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? फिर इस सवाल की तलाश में वे भीतर उलझते रहते हैं, घुटते रहते हैं। थोड़ी बहुत कोशिश करते हैं कि चलो बाहर जवाब ढूंढ़ें, तो बाहर की दुनिया तो बिलकुल निराली है। तीन तरह के लोग हैं संसार में- जो बाहर की दुनिया में सक्रिय हैं, पर भीतर एकांत में हैं। दूसरे जो बाहर की दुनिया में ही सक्रिय हैं, भीतर से उन्हेें कोई लेना-देना नहीं। तीसरे वे हैं जो भीतर से एकांत चाहते हैं। उनका एकांत यह शर्त रख देता है कि बाहर मत निकलो। यहीं उनके जीवन में भ्रम आ जाता है। एक वाक्य है जो ऐसे लोगों को मंत्र की तरह जीवन में उतारना चाहिए, ‘कुछ आप करें, कुछ होने दें’। जब-जब यह सवाल उठे कि हमारा मकसद क्या है, तब-तब यह मंत्र दोहराइगा। एक बात पर विचार करिए। हम एक सांस भीतर ले जाते हैं, एक सांस बाहर करते हैं। ऊपर वाले ने यह क्रिया गजब की बनाई है। भीतर मतलब आपका एकांत, खामोश रहना, अपने से जुड़ना और बाहर मतलब दुनिया से जुड़ना, बहुत से लोगों से बात करना। जब सांस भी एक बार भीतर-बाहर होती है तो यदि हम भी अपने काम करते हुए ऐसा करें तो क्या दिक्कत है? क्योंकि भीतर आई सांस यदि आपने प्राणायाम की दृष्टि से विचारशून्य रखी तो बाहर जा रही सांस आपको उत्साह में भर देगी, भ्रम दूर कर देगी और फिर कई सवालों के जवाब खुद-ब-खुद मिल जाएंगे..।


bhitar aati sans ko vicharshunya rakhein.

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