सत्य की रक्षा हमारे हर स्वार्थ, हर वचन और हर मज़बूरी से बढ़ कर हैं।

श्री कृष्ण का पूरा जीवन हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके जीवन की हर एक घटना एक महत्वपूर्ण सन्देश देती है, चाहे बचपन की रास लीला हो या गीता का ज्ञान या फिर महाभारत का युद्ध, भगवान श्री कृष्ण के जीवन का हर एक पल मानव जाति के लिए एक शिक्षा है।

महाभारत की पूरी कथा हम सभी जानते हैं और किताबों में काफी पढ़ भी चुके हैं, इसके अलावा टीवी पर भी अक्सर महाभारत देख चुके होंगे। महाभारत के युद्ध की एक घटना है जो मुझे बहुत ज्यादा प्रेरित करती है और मुझे उम्मीद है आप के लिए भी यह बहुत प्रेरक साबित होगी, अगर इसे जीवन में उतार लिया तो यह प्रसंग आपका जीवन बदल सकता है।

श्री कृष्ण और भीष्म पितामह वार्तालाप –

श्री कृष्ण ने अपनी पूरी सेना दुर्योधन को सौंप दी थी और स्वयं पाण्डवों की तरफ से युद्ध का आगाज कर रहे थे। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से वादा किया था कि वह युद्ध में हथियार नहीं उठाएँगे और निहत्थे ही पाण्डवों को विजयी बनायेंगे। युद्ध के नौवें दिन कौरवों के सेनापति भीष्म पितामह में चारों तरफ कहर बरपा रखा था। वो अकेले ही पूरी पांडव सेना पर भारी पड़ रहे थे। भीष्म पितामह अपने वचन और प्रतिज्ञा पर अडिग रहने के लिए जाने जाते थे। उनका मानना था कि जो प्रतिज्ञा उन्होंने की है उसे प्राण देकर भी निभाना है। एक तरफ श्री कृष्ण अपने निहत्थे रहने के वचन से बंधे थे लेकिन वहीं भीष्म पितामह पांडव सेना पर आग उगल रहे थे ऐसा लग रहा था मानो कुछ क्षण में ही भीष्म पांडवों को हरा देंगे। श्री कृष्ण शांति पूर्वक सब कुछ देख रहे थे वो जानते थे कि अर्जुन भीष्म का मुकाबला नहीं कर सकता। लेकिन उन्होंने अर्जुन से वादा किया था कि वह पांडवों को ही विजयी बनाएंगे। वही महाबलशाली भीष्म पांडवों का तहस नहस करने में लगे थे, यही सोचकर श्री कृष्ण ने भीष्म पितामह को रोकने के लिए रथ का पहिया उठा लिया। लेकिन भीष्म जानते थे कि श्री कृष्ण भगवान हैं इसीलिए उन्होने मुस्कुराते हुए अपने धनुष बाण एक ओर रख दिए और हाथ जोड़कर खड़े हो गए।

भीष्म पितामह – भगवन आपने तो युद्ध में कोई शस्त्र ना उठाने का वादा किया था, और आप तो भगवान हैं आप अपना वादा कैसे तोड़ सकते हैं।

श्री कृष्ण – हे भीष्म, आप तो खुद ज्ञानी हैं। आप कभी अपना वचन या प्रतिज्ञा नहीं तोड़ते इसीलिए आपका नाम भीष्म पड़ा। लेकिन शायद आप नहीं जानते कि धर्म और सत्य की रक्षा करना, आपकी प्रतिज्ञा से ज्यादा बढ़कर है। आप अपनी प्रतिज्ञा और वचन पर अटल हैं लेकिन अपनी प्रतिज्ञा निभाने के चक्कर में अधर्म का साथ दे रहे हैं। याद रहे, जब जब दुनियाँ में धर्म का नाश होगा तब तब मैं इस धरती पर अधर्म का नाश करने अवतरित होता रहूँगा। तुम एक इंसान होकर अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ पाये और अधर्म का साथ दे रहे हो लेकिन मैं भगवान होकर भी धर्म की रक्षा के लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़ रहा हूँ। अगर मेरी किसी प्रतिज्ञा या वचन की वजह से धर्म और सत्य पर कोई आंच आती है तो मेरे लिए वो प्रतिज्ञा कोई मायने नहीं रखती है और मैं धर्म के लिए ऐसी हजारों प्रतिज्ञा तोड़ने के लिए तैयार हूँ। अगर आपके सामने धर्म का नाश हो रहा हो और आप कुछ नहीं कर रहे तो भी आप पाप के भागी हैं। श्री कृष्ण का यह सन्देश दिल पर बहुत गहरी छाप छोड़ता है।

फंडा यह है कि सत्य की रक्षा हमारे हर स्वार्थ, हर वचन और हर मज़बूरी से बढ़ कर है । यही धर्म है और यही प्रसंग का सार भी हैं।


satya ki raksha hamare har swarth har vachan or har majburi se badkar he

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One thought on “सत्य की रक्षा हमारे हर स्वार्थ, हर वचन और हर मज़बूरी से बढ़ कर हैं।

  1. Real reason is that Bhishma is great devotee of Bhagwan Krishna. First of he took the side of Kaurava just to show the world even you are greatest fighter if you are against the Bhagwan Krishna then you can’t win. So it is very humble position to please Bhagwan Krishna. And every devotee has relationship with Krishna with different rasa. Krishna and Bhisma’s relationship is based on Veer rasa. So by fighting against Krishna he was actually pleasing. And By lifting wheel, Krishna proved that I can break my promise but I will never break the promise of my devotees, to save promise of his devotees, Krishna broke his own promise.

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