ओशो के अनुसार मनुष्य की जो अंतिम संभावना है वह है कृष्ण। कोई भी अथक प्रयास करके अपने भीतर के कृष्ण को जगा सकता है। यही है कृष्ण की पूजा…
अंग्रेजी में एक सुंदर मुहावरा है, फ्रैण्ड फिलासफर एण्ड गाइड, सखा, दार्शनिक और मार्गदर्शक। कोई ऐसा व्यक्ति जो मित्र हो और मार्गदर्शक भी। ये शब्द मानो कृष्ण के लिए ही गढ़े गए हैं। कृष्ण भगवान जरूर हैं लेकिन उनकी भगवत्ता गंभीर, दूर खड़े न्यायाधीश की तरह नहीं है। वे हंसते-खेलते लोगों को जीना सिखाते हैं। कृष्ण का अनेक स्त्रियों के साथ विभिन्न तल से संबंध है। उनके जीवन में अनेक स्त्रियां आईं, और हर स्त्री के हृदय में कृष्ण अलग रूप में प्रतिबिंबित होते हैं। राधा उनकी बचपन की संगिनी है जो नृत्य में, खेल में उनके संग थी। किसी और स्त्री के संग वे नाचे हों ऐसा उल्लेख नहीं है। कुंती के वे मार्गदर्शक थे तो द्रौपदी के सखा थे। कुंती ने उनसे अजीब वर मांगा, “विपद: न: सन्तुशश्वत। हमरे ऊपर सतत विपदा बनी रहे।” सुनकर अजीब लगता है लेकिन इसका गर्भित अर्थ यही है कि विपदा आने पर ही हम तुम्हारा नाम लेंगे। दुख में ही परमात्मा को पुकारते हैं, सुख में तो भूल जाते हैं। द्रौपदी के वे सखा थे। उनका प्रेम इतना गहरा था कि द्रौपदी का एक नाम कृष्णा था। जब द्रौपदी पर भरी सभा में चीरहरण का संकट आया तो उसने अपने पांच पतियों में से एक को भी नहीं बुलाया, वरन कृष्ण को पुकारने लगी। और वे बचाने आ भी गए। कृष्ण के साथ किसी का नाम सदा के लिए जुड़ गया तो वह है राधा का। राधा उनका अभिन्न अंग बन गई। वस्तुत: राधा कोई ऐतिहासिक स्त्री नहीं थी, राधा स्त्रीत्व का प्रतीक है। राधा, कृष्ण की कमनीयता है। उनके भीतर जो भी नाजुक है, संवेदनशील है उसका प्रतीक। राधा उनके नृत्य का घुंघरू, उनके भीतर जो भी स्त्रैण है उसका साकार रूप है। कृष्ण पूर्ण अवतार हैं लेकिन उनकी पूर्णता राधा के साथ मिलकर ही पूर्ण होती है।
krishna haste khelte logo ko jindagi jina sikhate hai.