जीने की राह के 125 सूत्र

शक्ति-संचार का अवसर हैं नवरात्र

समय बदलता ही है। फिर यह दौर तो और भी तेजी से बदल रहे दौर का है। जब समय साफ-साफ बदलता दिखे तो स्वयं को और दूसरों को बधाई दो। बीत गए से शिक्षा लो और आनेवाले समय के लिए उत्साहित हो जाओ। हिंदुओं ने इसे ‘नव-संवत्सर’ नाम दिया है। अपने भीतर की शक्ति के सदुपयोग के लिए परमात्मा ने काल खंड को भी हमारा सहयोगी बनाया है। ये नौ दिन अपने भीतर की ऊर्जा को सबसे नीचे के चक्र से ऊपर उठाने के दिन हैं। अपने मन के मंथन के लिए चैत्र के नवरात्र स्वर्ण अवसर है। जब हम गलत दिशा में चल रहे होते हैं तो मन हमें नहीं रोकता। मन को पतन, अनुचित और अप्रिय में बड़ी रुचि होती है। वह गलत के लिए समर्थन देता है। हमें सही से हटाने के मन के अपने तरीके हैं। वह प्रोत्साहन देता है, चलो कुछ गलत करें। इसीलिए इन दिनों में अपनी शक्ति को जाग्रत् करें, ताकि हम जान सकें कि जब मन कहे कि यह सही है तो हम गहरे उतरकर विश्लेषण कर लें, क्या वास्तव में यह सही है भी या नहीं। क्योंकि मन का सही परमात्मा के मार्ग का गलत होगा और मन जिसे गलत कहेगा, उसके सही होने का भी अध्ययन करने की शक्ति इसी नवरात्रि में आसानी से मिलेगी। ऊर्जा मूलाधार चक्र यानी काम-केंद्रों पर स्वभावतः पड़ी हुई है। इसे नाभि के नीचे स्वाधिष्ठान चक्र, फिर मणिपुर, अनाहत (हृदय), विशुद्ध (कंठ), आज्ञाचक्र, यानी दोनों भौंहों के बीच लाकर महसूस करना है कि शक्ति का हमने सदुपयोग किया और जीवन ऊर्जा को ऊपर ले आए। सारा व्यक्तित्व निखर जाएगा, यदि ऊर्जा काम-केंद्रों से मुक्त होकर ऊपर उठ गई। चलिए, स्वयं को निर्दोष बनाने के लिए ये नौ दिन समर्पित कर दें और आरंभ करने के लिए जरा मुसकराइए। 

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