जीने की राह के 125 सूत्र

जीने की राह के 125 सूत्र पं. विजयशंकर मेहता

लेखकीय

मैं विगत 28 वर्षों से भारत के प्रतिष्ठित अखबार ‘दैनिक भास्कर’ में स्तंभ लिखता आ रहा हूँ। कभी चर्चा चौराहे की, कभी जीवन-मंत्र, कभी पंचनामा तो कभी जीवन के सूत्र, इन नामों से मेरे स्तंभ छपते रहे। फिर आठ वर्षों में मैंने तीन हजार से अधिक व्याख्यान दे दिए। देश और दुनिया खूब घूमी। अनेक लोगों से संपर्क हुआ। नजदीकी बढ़ी तो लोगों ने अपनी समस्याएँ मुझे बताना शुरू कर दिया। एक बात मुझे भी समझ में आ गई कि जिसे देखो वह परेशान है। कोई संसार से, तो किसी को संपत्ति से, तो कोई है, जो संबंधों से दुःखी है। फिर स्वास्थ्य तो किसी को नहीं छोड़ता। आखिरी परेशानी होती है संतान की। लोग मेरे पास निदान के लिए आने लगे। मैं अच्छी तरह जानता हूँ, निदान मेरे पास नहीं, उन्हीं के पास है, जो समस्याग्रस्त हैं। किसी भी समस्या को ठीक से समझ लेना ही उसका सबसे बड़ा निदान है। जीने की राह का मतलब ही है कि हर कदम पर समस्या आएगी, लेकिन साथ में समाधान भी लाएगी। कितना ही बड़ा दुःख या परेशानी आए, जीवन रुकना नहीं चाहिए।

किसी भी समस्या को ठीक से समझ लेना ही उसका सबसे बड़ा निदान है। जीने की राह का मतलब ही है कि हर कदम पर समस्या आएगी, लेकिन साथ में समाधान भी लाएगी। कितना ही बड़ा दुःख या परेशानी आए, जीवन रुकना नहीं चाहिए।

इस पुस्तक में ऐसे ही सूत्र हैं, जिन्हें पढ़कर आपको लग सकता है कि ये पंक्तियाँ आप ही के लिए लिखी गई हैं। बहुत ध्यान और गहराई से देखेंगे तो आप किसी एक संवाद में समाधान पा लेंगे और हमारा पुस्तक लिखना सार्थक हो जाएगा। इसी भाव से इसे स्वीकार करें।

22 अप्रैल, 2016 संवत् 2073 उज्जैन —पं. विजयशंकर मेहता हनुमान जयंती, चैत्र पूर्णिमा

Advertisement

Share your thoughts on this article...

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s