दुनिया पाने के लिए जो लोग दौड़ रहे हैं, थकते वो भी हैं। फिर मन में एक विचार आता है कि लौट चलें या आगे बढ़ें? फिर उनको उन्हीं के भीतर कोई समझाता है- और दौड़ो.., थोड़ी दुनिया और हासिल कर लो..। बस, मनुष्य दौड़ता ही चला जाता है। जिन्हें बहुत कुछ मिल जाता है उनके मन में भी एक सवाल खड़ा होता है और जिन्हें नहीं मिलता वे भी सोचते हैं कब तक करें ये सब? यह सोच तब और प्रबल हो जाती है, जब कुछ नहीं मिलने पर या बहुत कुछ मिलने पर भी भीतर से बेचैनी बढ़ने लगती है। दुनिया की इस दौड़ में गुरु की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण हो जाती है, पर गुरु एक गड़बड़ कर देगा। वह आपकी चाल को मोड़ेगा। भाग रहे थे दुनिया की तरफ, वह दौड़ाएगा परमात्मा की ओर। लेकिन उस परमशक्ति की ओर की दौड़ गुरु बहुत देर नहीं चलने देता। थोड़ी देर बाद आपको रोक देता है और उसके रोकने का तरीका होता है मंत्र। दरअसल मंत्र जब सांस से मिलकर शरीर के भीतर के सात चक्रों से जुड़ते हैं तब मनुष्य रुक जाता है। ऐसे में शरीर तो चलता हुआ दिखता है, मस्तिष्क भी सारे निर्णय ले रहा होता है, लेकिन आप भीतर से रुके हुए होते हैं। एक अहसास में डूब जाते हैं कि कर तो हम रहे हैं, करवा कोई और रहा है। बस, गुरु की भूमिका यहीं पूरी होती है। इसलिए जब दुनिया पाने के लिए दौड़ रहे हों तो कोई गुरु अवश्य अपने साथ रखिए। और कोई न मिले तो हनुमानजी को ही गुरु बना लीजिए, फिर देखिए मंजिल किस तरह आसान हो जाती है..।
duniya pane ke liye doude to guru sath rakhe.