भाग-1
बाल कांड
हम लोग धन्य हैं कि हमने भारत भूमि पर जन्म लिया। हमारे पास यह गौरव है कि हमने वेद, शास्त्र और पुराणों के बीच जन्म लिया है। हमारी धरती, हमारे समाज, हमारे परिवार को साधु-संत और संन्यास का स्पर्श प्राप्त है। हम इस मामले में भाग्यशाली हैं कि हमारे ऊपर गुरु की कृपा होती है।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस के रूप में भारतीय संस्कृति को एक ऐसा अद्भुत ग्रंथ दिया, साहित्य दिया, शब्द दिए, कथा दी, जिसने वेदों को सरल कर दिया। उपनिषदों के सार को हमें समझा दिया। आज हमारे धर्म-अध्यात्म के मार्ग में जो भी कठिनाइयाँ हैं, श्रीरामचरितमानस ने उनको बहुत सरल बना दिया है।
श्रीरामचरितमानस के रूप में गोस्वामी तुलसीदासजी ने जो दिया, उसमें सबसे अद्भुत है—हमें परिवार के राम और हमारे हनुमान दिए। राम संतों के रहे, राम विद्वानों के रहे, देवताओं के रहे; लेकिन तुलसीदासजी ने हमको परिवार के राम दिए हैं।
आप-हम सभी इस बात से भलीभाँति परिचित हैं कि हमारे पास अर्थात् भारतीय हिंदू संस्कृति में चार शास्त्र हैं। रामायण, महाभारत, गीता और भागवत। रामायण हमें जीना सिखाती है, महाभारत रहना सिखाता है, गीता करना सिखाती है और भागवत हमें मरना सिखाती है।
जीने और रहने में बड़ा फर्क है। महाभारत रहना सिखाता है। और रह तो पशु भी सकता है। लेकिन जीने की संभावना सिर्फ मनुष्य में है।
जीना क्या है? पहले इसको समझ लिया जाए।
सांस से होश जोड़ना ही जीना है।
एक आदमी एक संत के पास गया और कहा, ‘मैं जीना चाहता हूं।’ संत जानते थे यह बुद्धिमान व्यक्ति है। यह वही उत्तर सुनना चाहेगा जो इसे अच्छा लगेगा। पढ़े-लिखों के साथ यह परेशानी रहती ही है। उन्होंने कहा, ‘यदि जीना चाहते हो तो एक काम करो, सांस लेते रहो।’ यह उत्तर सुनकर किसी को भी हंसी जाएगी। उस व्यक्ति ने कहा, ‘यह कौन सी बात हुई? सांस तो मैं ले ही रहा हूं।’ तब फकीर ने कहा, ‘सांस लेने में और जीने में फर्क है। सांस पशु भी ले रहा है, लेकिन वह जीना नहीं जानता। जिन क्षणों में आप अपनी सांस के प्रति होश में होंगे उन क्षणों में आप जिएंगे। अपनी सांस पर ध्यान दीजिए, बाकी बातें आपको खुद समझ आजाएंगी।’
जीने के लिए क्या सूत्र होंगे, यह हमें रामायण या रामकथा सिखाती है।
यहाँ मन में एक प्रश्न खड़ा होना स्वाभाविक है कि आखिर वे कौन से सूत्र हैं, जो हमें जीवन को सही अर्थ में जीना सिखाते हैं? आपके इसी प्रश्न का उत्तर इस पुस्तक के माध्यम से देने का प्रयास किया गया है।
देखिए, कोई चीज पढ़ या सुन लेना ही काफी नहीं है। महत्त्वपूर्ण यह है कि उसमें आपकी रुचि कितनी है। रुचि जितनी अधिक होगी, बात उतनी ही गहराई से समझ आएगी।
रामकथा को समझने के लिए विशेष मानसिक धरातल पर आना पड़ता है। इसकी मस्ती कुछ और हैं।
रामकथा में गहराई से प्रवेश करने से पहले एक छोटी सी कहानी पढ़-समझ ली जाए। यह कहानी जीवन भर आपके काम आएगी।
एक बादशाह के दरबार में होने वाले संगीत कार्यक्रम के लिए किसी बहुत बड़े संगीतकर को बुलाया गया। उस संगीतकार ने एक शर्त रख दी कि मैं संगीत तो सुनाऊँगा लेकिन मेरा संगीत सुनकर यदि किसी ने गरदन हिला दी तो उसकी गरदन उड़ा दी जाए।
अब यह बड़ा विचित्र मामला था पर राजा भी राजा थे। राजाओं को तो गरदन उड़ाने में मज़ा भी आता है। बादशाह ने संगीतकार की शर्त मंजूर कर ली। सभी को सूचना दे दी गई कि कार्यक्रम में वे ही लोग शामिल हों, जो अपनी गरदन पर नियंत्रण रख सकें। अगर किसी ने गरदन हिलाई तो काट दी जाएगी।
कार्यक्रम शुरू होने से पहले जहाँ 50 हजार लोगों के आने की संभावना थी, वहाँ इस घोषणा के बाद कुछ हजार लोग ही शामिल हुए और वे भी प्रयास कर रहे थे कि किसी कारण से गरदन न हिल जाए।
बादशाह के सैनिक खुली तलवार लेकर चारों ओर खड़े हो गए। कार्यक्रम आरंभ हुआ। वास्तव में अद्भुत संगीत की प्रस्तुति थी। एक-एक करके धीरे-धीरे 100-200 लोगों की गरदनें हिलने लगीं। बादशाह को आश्चर्य हुआ कि इतने कठोर दंड की घोषणा के बाद भी गरदनें हिल रही हैं।
जब कार्यक्रम समाप्त हुआ तो बादशाह ने सैनिकों से कहा—उन सबको इधर लाओ, जो गरदन हिला रहे थे। सैनिकों ने सभी 100-200 लोगों को बादशाह के सामने हाजिर कर दिया। बादशाह ने संगीतकार को कहा—ये लोग थे, जो गरदन हिला रहे थे। आप कहें तो इनकी गरदन कटवा दी जाएँ?
तब उस संगीतकर ने कहा—मुझे इन्हीं लोगों की जरूरत थी। जो जान हथेली पर लेकर संगीत सुनने को तैयार हों। असल में सुनने लायक तो ये ही लोग हैं। अब मैं इन्हीं चुनिंदा लोगों को संगीत सुनाऊँगा।
जिस दुनिया में हम रहते हैं, वह हमसे छूटती नहीं है। हमें दुनिया छोड़नी भी नहीं है। हमें कथा सुनकर उन कारकों को ढूँढ़ना है, जो हमारी परेशानी, अशांति के कारण हैं।
समस्या सभी के जीवन में है। किसी को स्वास्थ की, किसी को सम्पत्ति की, किसी को संतान की, संबंध, संसार की लेकिन थोड़ी देर के लिए आप अपनी समस्याओं को भूल जाइए। अगर भूल गए तो रामकथा की मस्ती को पकड़ लेंगे, इसके संदेश को इसके जीवन को पकड़ लेंगे समस्या सुलझाने के लिए सूत्र मिल जाएंगे जो आज भी काम आएंगे और जीवन भर काम आएंगे। इस प्रकार और इस भाव से कथा को सुनिए।
गरदन उतरने का यहां एक अर्थ यह भी है। कि गरदन के ऊपर वाले हिस्से में मस्तक होता है जिसके अंदर मस्तिष्क होता है। और बुद्धि से तो भगवान पकड़ में नही आएगा। इसे उतारना पड़ेगा। आप इस प्रकार इसको सुनिए जैसे ऊपर वाला हिस्सा है ही नहीं। तो नीचे केवल ह्रदय रह जाएगा और कथा आपके भीतर उतर जाएगी। तर्क वाली बुद्धि आपके पास जब तक रहेगी आप रामकथा को नही समझ पाएंगे, आप कथा में तो ज़रूर बैठेंगे पर कथा आपके भीतर नही बैठेगी, इसलिए अपनी बुद्धि को, तर्क को, विज्ञानं को दूर रखके रामकथा को सुनना। क्योंकि बुद्धि से शोध हो सकता हैं। सवाल खड़े हो सकते हैं। लेकिन बुद्धि से ज़वाब नही मिलेगा। ह्रदय से मिलेगा ज़वाब।
चलिए, कथा में प्रवेश करते हैं।
पहले तो यह जान ले की जिस कथा को आप पढ़ रहे हैं। उसका आधार क्या है। इसका आधार है श्रीरामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस की रचना की थी। वाल्मीकिजी रामायण की रचना कर चुके थे और वह देवभाषा संस्कृत में रची गई थी। इसलिए रामायण को समझना आम लोगों के लिए कठिन था।
फिर समय ऐसा आया, जब कि भारतीय संस्कृति पर यवनों द्वारा हमला किया जा रहा था। लोग असुरक्षित थे। लोगों को लगा जिस तरह से बाहरी शक्तियों द्वारा प्रहार किया जा रहा है, ऐसे में कौन है जो हमारी रक्षा कर सकेगा।
कोई ऐसा व्यक्तित्व, कोई ऐसा अवतार जीवन में हो, जो हमारे भ्रम को दूर कर, हमें भय से मुक्ति दिला सके।
उस समय (लगभग पाँच सौ साल पहले) गोस्वामी तुलसीदासजी ने लोकभाषा में रामचरितमानस की रचना की। आज भी हम जीवन के कई जटिल प्रश्नों के उत्तर रामचरितमानस की चौपाइयों में ढूँढ़ते हैं।